Thursday, March 17, 2022

काशी

वाराणसी या बनारस या कहो काशी, जो ख्याल सबसे पहले आता सुन कर यह नाम, वो हैं खुद भोले नाथ। वो सँकरी गलियां, जो निकलती सीधे घाट पर जहा से बहती गंगा, और खुलता मोक्ष का द्वार।

बनारस, कहते है धरती पर अगर मोक्ष का रास्ता कही से गुजरता है तो वो है बनारस, जहा वरुण वा अस्सी नदी उत्तर वा दक्षिण दिशा से 202 किमी की यात्रा करके आदिकेशव घाट पर सराय मोहना नामक स्थान पर गंगा में मिलती है, और दोनो नदियों के बीच बसे शहर को वरुणोसि कहा गया जो बाद में वाराणसी हो गया। जहा दिन हो या रात हर पल कंधे पर लेट कर लोग आते है मोक्ष की प्राप्ति के लिए, लेकिन क्या वास्तव में मोक्ष का रास्ता काशी से गुजरता? अब यह तो वो ही जाने जो इस रास्ते पर चला गया है। लेकिन कुछ तो ढूंढला सा मेरी आंखो के आंखे चलता है, जल रही है लाशें कई मानो कपाट पर मारी गई उस लाठी से मणिकर्णिका घाट पर मोक्ष का दरवाजा खुल रहा है।

पता नही यह कैसा अहसाश है, पर बनारस की गलियों में कुछ तो बात है बैठा हुआ हूं मिलो दूर लेकिन कुछ तो है गंगा किनारे बसे उस शहर में जो मेरे लिए खास है, पता नही कब जाना हो पर शायद कुछ सवालों का जवाब वहा हो तभी तो एक आवाज आती है, बैठा कौन इंतजार में घाट किनारे बस यह बात मुझको सताती है।

एक दिन सब बदल जाएगा, पहुंच जाऊंगा काशी जिस समय वो समय वही थम जाएगा, गंगा किनारे बसे इस शहर में कोई अपना मिल जाएगा बैठूंगा जब घाट पर मैं, शायद मेरे सवालों का जवाब मिल जाएगा, है उथल पुथल जिंदगी में जितनी सब समल जाएगा, कहता है मेरा मन उगते सूरज के साथ नया रास्ता खुल जाएगा, शाम की गंगा आरती के साथ जिंदगी के कई राजो से पर्दा उठ जाएगा, सुबह का गंगा स्नान एक अद्भुत एहसाश कराएगा।

मुझे याद है, जब में बनारस गया था ज्यादा उम्र नही थी मेरी पर सुबह सूर्य उदय के वक्त का स्नान आज भी ताजा है मानो जैसे कुछ दिन पहले की ही बात हो, लेकिन अब तो इस बात को एक दशक होने को है। 

पता नही अब कब जाना होगा, पर अंदर से आती एक आवाज है "जब सही समय होगा, आदि तू खुद को काशी विश्वनाथ के द्वार पर पाएगा"

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